Breaking

Wednesday, 2 August 2017

Niyam Torkar Aage Badhiye

एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे | एक दिन कहीं से एक बिल्ली रास्ता भटक कर आश्रम में आ गया | महात्माजी ने उस भूखे-प्यासे बिल्ली के बच्चे को दूध-रोटी खिलाया | वह बिल्ली का बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा | धीरे-धीरे वह बिल्ली महात्माजी के साथ घुलने लगा | महात्माजी भी उसे प्यार करते थे, लेकिन इससे महामाजी को ये समस्या हुई की जब भी महात्माजी शाम को ध्यान में बैठते थे तो वह बिल्ली कभी उसकी गोद में चढ़ जाता तो कभी कंधे या सिर पर बैठ जाता | इससे महात्माजी को ध्यान करने में समस्या होती थी | तो महात्माजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा की जब मैं शाम को ध्यान में बैठूँगा तो उससे पहले इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बांध देना | ये अब रोज का नियम बन गया | जब भी महात्माजी ध्यान में बैठते तो बिल्ली को दूर एक पेड़ से बांधा जाने लगा | एक दिन महात्माजी की अचानक मृत्यु हो गयी | तो महात्माजी की एक काबिल शिष्य गद्दी पर बैठा | वह भी जब ध्यान में बैठता तो बिल्ली को दूर एक पेड़ से बांधा जाने लगा | फिर एक दिन तो अनर्थ ही हो गया की बिल्ली ही मर गयी | सारे शिष्यों की मीटिंग हुई, सबने विचार-विमर्श किया की बड़े महात्माजी तब तक ध्यान में नहीं बैठते थे, जब तक बिल्ली को पेड़ से बांधा नहीं जाता था | अतः सबने विचार किया की पास के गाँव से बिल्ली लाया जाये | आखिरकार काफी ढूंढने के बाद एक बिल्ली मिली, जिसे पेड़ पर बांधने के बाद महात्माजी ध्यान में बैठे |

उसके बाद तो जाने कितनी बिल्लियाँ मर चुकी और कितने महात्माजी मर चुके, लेकिन आज भी जब तक बिल्ली को पेड़ से बांधा न जाये तब तक महात्माजी ध्यान में नहीं बैठते है | कभी अगर उनसे इसका कारण पूछे तो कहते की ये हमारी परंपरा है | हमारे पुराने सारे गुरूजी करते रहे है, वो सब गलत तो नहीं हो सकते | कुछ भी हो जाये हम अपनी परंपरा नहीं चोर सकते है |

दोस्तों, हम अक्सर ऐसा काम करते है जिसका हमें पता भी नहीं होता की हम ये क्यों कर रहे है | हम उस काम को बस इसलिए कर रहे होते है क्युकी हमारे घरवाले ऐसा करने के लिए कहते है | और हमारे घरवाले भी इसलिए कर रहे होते है क्युकी उनके भी बड़े-बुजुर्ग यही करते आ रहे थे |

दोस्तों मुझे आज तक ये समझ नहीं आया की ये नियम बनते कैसे है और इन्हें बनाता कौन है | क्युकी लोग जब आदिमानव थे तब तो सब साथ में रहते थे | फिर धीरे-धीरे हजारो तरह की जाती और हजारो तरह के नियम | आज सुबह की ही बात है, मेरे पड़ोसी मेरी माँ से कह रही थी की इस बार तो रक्षा-बंधन के दिन सुबह 7 बजे के पहले ही राखी बांधा जायेगा क्युकी उसके बाद बांधना मना है | ऐसा पंडित जी ने कहा है | अब मैं कहता हु की जब रानी कर्णावती ने हुमायु को राखी भेजी थी तब भी ये सब नियम था क्या ? और अगर उस समय नियम नहीं था तो अब क्यों ?

अंत में आपसे बस यही कहना चाहूँगा की अगर आप कुछ करना चाह रहे है, लेकिन सिर्फ इस वजह से नहीं कर रहे है की लोग क्या कहेंगे या इस काम को करने से कहीं मेरे साथ कुछ बुरा न हो जाये | तो दोस्तों आगे बढिये क्युकी लोग तो कहते ही रहेंगे चाहे आप अच्छा काम करे या बुरा | और अगर आप ये सोच रहे की ये करने से कही कुछ बुरा न हो जाये तो आप निश्चिंत रहिये ऐसा कुछ नहीं होने वाला है |

No comments:

Post a Comment